भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पेड़ पर वार / सुदर्शन वशिष्ठ" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ |संग्रह=अनकहा / सुदर्शन वशिष्ठ }} <...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
02:12, 1 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
माँस मज्जा
नसें और हड्डियाँ चटकाते
वार पर वार
सहता है पेड़।
जानता है पेड़
कि लोहे की कुल्हाड़ी हो
या दाँतो वाला आरा
काठ बिना
लोहे का टुकड़ा
हथियार
ठण्डा और निष्प्राण।
नहीं डगमगाता पेड़ भीषण अंधड़ से
काटती हैं उसे अपनी ही
टहनी की धार।
न बोलता है
न सिसकता है
सहता है वार पर
गिरने पर
चिघाड़ता है बस एक बार
तहस नहस करता है आस-पास
घटोत्कच की तरह
चतुर कर्ण बच निकलता है बार-बार!