भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सीखो आँखें पढ़ना साहिब / गौतम राजरिशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गौतम राजरिशी }} <poem> सीखो आँखें पढ़ना साहिब होगी म...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:26, 7 सितम्बर 2009 का अवतरण
सीखो आँखें पढ़ना साहिब
होगी मुश्किल वरना साहिब
सम्भल कर तुम दोष लगाना
उसने खद्दर पहना साहिब
तिनके से सागर नापेगा
रख ऐसे भी हठ ना साहिब
दीवारें किलकारी मारे
घर में झूले पलना साहिब
पूरे घर को महकाता है
माँ का माला जपना साहिब
सब को दूर सुहाना लागे
क्यूं ढ़ोलों का बजना साहिब
कितनी कयनातें ठहरा दे
उस आँचल का ढ़लना साहिब