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बाबू महेश नारायण

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'''स्वप्न''' (लम्बी कविता)
* [[थी अन्धेरी रात, और सुनसान था / बाबू महेश नारायण]]
* [[फिर कहने लगी सुनो दरख़्तो! / बाबू महेश नारायण]]
* [[दिनों तीन चार पाई पड़ी / बाबू महेश नारायण]]
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