भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|shorturl=
}}
'''स्वप्न''' (लम्बी कविता)
* [[थी अन्धेरी रात, और सुनसान था / बाबू महेश नारायण]]
* [[फिर कहने लगी सुनो दरख़्तो! / बाबू महेश नारायण]]
* [[दिनों तीन चार पाई पड़ी / बाबू महेश नारायण]]