भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गाँव का महाजन / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: वह समाज के त्रस्त क्षेत्र का मस्त महाजन, गौरव के गोबर-गनेश-सा मारे...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
07:34, 12 सितम्बर 2009 का अवतरण
वह समाज के त्रस्त क्षेत्र का मस्त महाजन,
गौरव के गोबर-गनेश-सा मारे आसन,
नारिकेल-से सिर पर बाँधे धर्म-मुरैठा,
ग्राम-बधूटी की गौरी-गोदी पर बैठा,
नागमुखी पैतृक सम्पति की थैली खोले,
जीभ निकाले, बात बनाता करूणा घोले,
ब्याज-स्तुति से बाँट रहा है रूपया-पैसा,
सदियों पहले से होता आया है ऐसा!!
सूड़ लपेटे है कर्जे की ग्रामीणों को,
मुक्ति अभी तक नहीं मिली है इन दीनों को,
इन दीनों के ऋण का रोकड़-कांड बड़ा है,
अब भी किन्तु अछूता शोषण-कांड पड़ा है।