भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दिल का जिस शख़्स के पता पाया / आरज़ू लखनवी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आरज़ू लखनवी }} <poem> दिल का जिस शख़्स के पता पाया। उ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:10, 12 सितम्बर 2009 का अवतरण
दिल का जिस शख़्स के पता पाया।
उसको आफ़त में मुब्तला पाया॥
नफ़ा अपना हो कुच तो दो नुक़सान।
मुझको दुनिया से खो के क्या पाया॥
बेकसी में भी गुज़र ही जाएगी।
दिल को मैं और दिल मुझे समझा गया॥