भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"छाया और धूप को लेकर / अवतार एनगिल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}}<poem> {{KKRachna |रचनाकार=अवतार एनगिल |संग्रह=अन्धे कहार / अवतार एनगिल }} ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:48, 12 सितम्बर 2009 का अवतरण
{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=अन्धे कहार / अवतार एनगिल
}}
समन्दर किनारे
भागते हुए
मैंने धूप का एक टुकड़ा उठाया
और अपनी हथेली में बंद कर लिया
रेगिस्तान में
सफ़र करते हुए
मैंने छाया
का एक अंश पकड़ा
और दूसरी मुट्ठी में
सहेज लिया
पर्वत पर चढ़ते हुए
रुककर
मैंने अपनी हथेलियां खोलीं
और लड़खड़ा गया......
बताओ तो भला
कौन चल पाया है
बिना लड़खड़ाए,
छाया और धूप को
एक साथ मुट्ठियों में भरकर