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"वो अपने चेहरे में सौ अफ़ताब रखते हैं / हसरत जयपुरी" के अवतरणों में अंतर
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18:19, 13 सितम्बर 2009 का अवतरण
वो अपने चेहरे में सौ अफ़ताब रखते हैं
इसीलिये तो वो रुख़ पे नक़ाब रखते हैं
वो पास बैठे तो आती है दिलरुबा ख़ुश्बू
वो अपने होठों पे खिलते गुलाब रखते हैं
हर एक वर्क़ में तुम ही तुम हो जान-ए-महबूबी
हम अपने दिल की कुछ ऐसी किताब रखते हैं
जहान-ए-इश्क़ में सोहनी कहीं दिखाई दे
हम अपनी आँख में कितने चेनाब रखते हैं