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"वसन्त आया / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

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सखि, वसन्त आया
 
भरा हर्ष वन के मन,
 
नवोत्कर्ष छाया।
 
  
किसलय-वसना नव-वय-लतिका
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सखि, वसन्त आया<br>
मिली मधुर प्रिय उर-तरु-पतिका
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भरा हर्ष वन के मन,<br>
मधुप-वृन्द बन्दी-
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नवोत्कर्ष छाया।<br><br>
पिक-स्वर नभ सरसाया।
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लता-मुकुल हार गन्ध-भार भर
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किसलय-वसना नव-वय-लतिका<br>
बही पवन बन्द मन्द मन्दतर,
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मिली मधुर प्रिय उर-तरु-पतिका<br>
जागी नयनों में वन-
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मधुप-वृन्द बन्दी-<br>
यौवन की माया।
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पिक-स्वर नभ सरसाया।<br><br>
  
अवृत सरसी-उर-सरसिज उठे;
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लता-मुकुल हार गन्ध-भार भर<br>
केशर के केश कली के छुटे,
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बही पवन बन्द मन्द मन्दतर,<br>
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जागी नयनों में वन-<br>
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यौवन की माया।<br><br>
  
स्वर्ण-शस्य-अंचल
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अवृत सरसी-उर-सरसिज उठे;<br>
पृथ्वी का लहराया।
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केशर के केश कली के छुटे,<br><br>
  
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स्वर्ण-शस्य-अंचल<br>
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पृथ्वी का लहराया।<br><br>

22:53, 28 अक्टूबर 2006 का अवतरण

लेखक: सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

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सखि, वसन्त आया
भरा हर्ष वन के मन,
नवोत्कर्ष छाया।

किसलय-वसना नव-वय-लतिका
मिली मधुर प्रिय उर-तरु-पतिका
मधुप-वृन्द बन्दी-
पिक-स्वर नभ सरसाया।

लता-मुकुल हार गन्ध-भार भर
बही पवन बन्द मन्द मन्दतर,
जागी नयनों में वन-
यौवन की माया।

अवृत सरसी-उर-सरसिज उठे;
केशर के केश कली के छुटे,

स्वर्ण-शस्य-अंचल
पृथ्वी का लहराया।