भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जंजैहली घाटी / नवनीत शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवनीत शर्मा |संग्रह= }} <poem> शिमला के अकड़ाए हुए दे...) |
छो |
||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
क्या मुकाबला थुनाग की रई का | क्या मुकाबला थुनाग की रई का | ||
पर इतना सीधापन भी क्या | पर इतना सीधापन भी क्या | ||
− | कि | + | कि कुक्कर् की पहली विसल |
− | से भी पहले गल | + | से भी पहले गल जाएँ |
बगस्याड़ और जंजैहली के राजमाश। | बगस्याड़ और जंजैहली के राजमाश। | ||
कितने ही छोटे-छोटे रायगढ़ों के आगे | कितने ही छोटे-छोटे रायगढ़ों के आगे | ||
तन कर रहता है मालरोड । | तन कर रहता है मालरोड । | ||
+ | |||
इधर, अभी लोकगीत ही गाता है | इधर, अभी लोकगीत ही गाता है | ||
या खामोश रहता है भीतरी सिराज | या खामोश रहता है भीतरी सिराज | ||
इसीलिए बचा है शायद। | इसीलिए बचा है शायद। | ||
+ | |||
डर यही है | डर यही है | ||
जिस दिन शिमला से | जिस दिन शिमला से | ||
जुड़ जाएगी | जुड़ जाएगी | ||
− | + | जँजैहली घाटी | |
खत्म हो जाएगी। | खत्म हो जाएगी। | ||
</poem> | </poem> |
22:29, 17 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
शिमला के अकड़ाए हुए
देवदार से भला
क्या मुकाबला थुनाग की रई का
पर इतना सीधापन भी क्या
कि कुक्कर् की पहली विसल
से भी पहले गल जाएँ
बगस्याड़ और जंजैहली के राजमाश।
कितने ही छोटे-छोटे रायगढ़ों के आगे
तन कर रहता है मालरोड ।
इधर, अभी लोकगीत ही गाता है
या खामोश रहता है भीतरी सिराज
इसीलिए बचा है शायद।
डर यही है
जिस दिन शिमला से
जुड़ जाएगी
जँजैहली घाटी
खत्म हो जाएगी।