भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पांच शे’र / यगाना चंगेज़ी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=यगाना चंगेज़ी | ||
+ | }} | ||
शरबत का घूँट जान के पीता हूँ खूनेदिल। | शरबत का घूँट जान के पीता हूँ खूनेदिल। | ||
21:52, 22 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
शरबत का घूँट जान के पीता हूँ खूनेदिल।
ग़म खाते-खाते मुँह का मज़ा तक बिगड़ गया॥
इसी फ़रेब ने मारा कि कल है कितनी दूर।
एक आज-कल में अबस<ref>व्यर्थ</ref> दिन गँवायें है क्या-क्या।
ख़ुशी में अपने क़दम चूम लूँ तो ज़ेबा<ref>मुनासिब</ref> है।
वो लगज़िशों पै<ref>लड़खडा़ने पर</ref> मेरी मुसकराये है क्या-क्या॥
बस एक नुक्तये-फ़र्ज़ी का<ref>कल्पना-बिंदु का</ref> नाम है काबा।
किसी को मरकज़े-तहक़ीक़ का<ref>खोज के लक्ष्य का</ref> पता न चला॥
उमीदो-बीमने<ref>आशा-निराशा</ref> मारा मुझे दुराहे पर।
कहाँ के दैरो-हरम? घर का रास्ता न मिला॥
शब्दार्थ
<references/>