भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दो घड़ी को दे दे कोई अपनी आँखों की जो नींद / आरज़ू लखनवी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आरज़ू लखनवी }} <poem> दो घडी़ को दे-दे कोई अपनी आँखों ...)
(कोई अंतर नहीं)

23:10, 23 सितम्बर 2009 का अवतरण

दो घडी़ को दे-दे कोई अपनी आँखों की जो नींद।
पाँव फैला दूँ गली में तेरी सोने के लिए॥

मिट भी सकती थी कहीं, बेरोये छाती की जलन।
आग को पिघला लिया फाहा भिगोने के लिए॥