"सदस्य वार्ता:Amitabh" के अवतरणों में अंतर
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एक ग़ज़ल पूरी टाइप करने के बाद उसे सेव भी कर लिया था लेकिन शीर्षक में कुछ त्रटि थी उसे दूर करने के लिये वहाँ पर सुधार कर सेहेजा तो पूरी गज़ल ही गायब हो गयी और शीर्षक प्रदर्शित करने लगा कि यह पन्ना अभी बना नही है। लगता है अब ऑफलाइन ही टाइप करके जोड़ना पड़ेगा। | एक ग़ज़ल पूरी टाइप करने के बाद उसे सेव भी कर लिया था लेकिन शीर्षक में कुछ त्रटि थी उसे दूर करने के लिये वहाँ पर सुधार कर सेहेजा तो पूरी गज़ल ही गायब हो गयी और शीर्षक प्रदर्शित करने लगा कि यह पन्ना अभी बना नही है। लगता है अब ऑफलाइन ही टाइप करके जोड़ना पड़ेगा। | ||
सादर | सादर | ||
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अमित | अमित |
21:15, 24 सितम्बर 2009 का अवतरण
मैने पूरा पृष्ठ लिखने के बाद जब बदलाव सहेजें पर क्लिक किया तो अनुमति त्रुटि के साथ पूरा मैटर गायब हो गया जबकि मैं लोगिन भी था। कृपया सहायता करें जिससे श्रम व्यर्थ न हो।
प्रिय अमिताभ जी!
कभी-कभी ऐसा तब हो जाता है, जब इंटेरनेट कनेक्शन बीच में ही टूट जाता है। जिस दौरान आप मैटर टाईप कर रहे थे, उस्के बीच में ही कभी इंटरनेट कनेक्शन बन्द हो गया। इस वज़ह से आपकी वो सामग्री भी गायब हो गई जो कनेक्शन टूटने से पहले आपने सहेजी नहीं थी। इस परेशानी से बचने के लिए ’बदलाव सहेजें’ बटन दबाने से पहले सारी टाईप सामग्री को कॉपी कर लेना चाहिए। अगर सामग्री ग़ायब होती है तो आप उसे पुनः कॉपी से निकाल सकते हैं।
सादर
अनिल जनविजय
इसमें अनडू की भी व्यवस्था करें
एक ग़ज़ल पूरी टाइप करने के बाद उसे सेव भी कर लिया था लेकिन शीर्षक में कुछ त्रटि थी उसे दूर करने के लिये वहाँ पर सुधार कर सेहेजा तो पूरी गज़ल ही गायब हो गयी और शीर्षक प्रदर्शित करने लगा कि यह पन्ना अभी बना नही है। लगता है अब ऑफलाइन ही टाइप करके जोड़ना पड़ेगा। सादर अमित बाद में मैने अपने योगदान में देखा तो पुराना उद्धरण पूरा का पूरा पड़ा था जिसे मैंने तुरन्त कॉपी कर लिया और पेस्ट कर दिया। श्रम तो बच गया लेकिन यह गड़बड़झाला समझ में नहीं आया। अमित