भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जो दर्द मिटते मिटते भी मुझको मिटा गया / आरज़ू लखनवी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आरज़ू लखनवी }} <poem> जो दर्द मिटने-मिटते भी मुझको मि...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:44, 25 सितम्बर 2009 का अवतरण
जो दर्द मिटने-मिटते भी मुझको मिटा गया।
क्या उसका पूछना कि कहाँ था कहाँ न था॥
अब तक चारासाज़िये-चश्मेकरम है याद।
फाहा वहाँ लगाते थे, चरका जहाँ न था॥