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"पलक झपकी कि मंज़र ख़त्म था बर्के-तजल्ली का / आरज़ू लखनवी" के अवतरणों में अंतर
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14:27, 25 सितम्बर 2009 का अवतरण
पलक झपकी कि मंज़र खत्म था बर्क़े-तजल्ली का।
ज़ता सी न्यामतेदीद, उसका भी यूँ रायगाँ जाना॥
समझ ले शमा से ऐ हमनशीं! आदाबे-ग़मख्वारी।
ज़बाँ कटवानेवाले का है, मन्सब राज़दाँ होना॥