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"जानकर अनजान बन जा / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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पथ मिला, मिट्टी सिधारी, | पथ मिला, मिट्टी सिधारी, | ||
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सत्य से अज्ञान बन जा। | सत्य से अज्ञान बन जा। | ||
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किंतु होना, हाय, अपने आप | किंतु होना, हाय, अपने आप | ||
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अग्नि को अंदर छिपाकर, | अग्नि को अंदर छिपाकर, |
02:03, 30 सितम्बर 2009 का अवतरण
जानकर अनजान बन जा।
पूछ मत आराध्य कैसा,
जब कि पूजा-भाव उमड़ा;
मृत्तिका के पिंड से कह दे
कि तू भगवान बन जा।
जानकर अनजान बन जा।
आरती बनकर जला तू
पथ मिला, मिट्टी सिधारी,
कल्पना की वंचना से
सत्य से अज्ञान बन जा।
जानकर अनजान बन जा।
किंतु दिल की आग का
संसार में उपहास कब तक?
किंतु होना, हाय, अपने आप
हत्विश्वास कब तक?
अग्नि को अंदर छिपाकर,
हे हृदय, पाषाण बन जा।
जानकर अनजान बन जा।