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"दो पोज़ / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर
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सद्यस्नात तुम<br> | सद्यस्नात तुम<br> |
19:30, 1 मई 2008 का अवतरण
सद्यस्नात तुम
जब आती हो
मुख कुन्तलों से ढँका रहता है
बहुत बुरे लगते हैं वे क्षण जब
राहू से चाँद ग्रसा रहता है ।
पर जब तुम
केश झटक देती हो अनायास
तारों सी बूँदें
बिखर जाती हैं आसपास
मुक्त हो जाता है चाँद
तब बहुत भला लगता है ।
सद्यस्नात=इसी समय नहाई हुई ; कुन्तल=केश