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"इधर से अब्र उठकर जो गया है / मीर तक़ी 'मीर'" के अवतरणों में अंतर

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सरहाने 'मीर' के आहिस्ता बोलो
 
सरहाने 'मीर' के आहिस्ता बोलो
  
अभी टुक रोते रोते सो गया है
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अभी टुक रोते-रोते सो गया है

16:40, 2 अक्टूबर 2009 का अवतरण

इधर से अब्र उठकर जो गया है

हमारी ख़ाक पर भी रो गया है


मसाइब और थे पर दिल का जाना

अजब इक सानीहा सा हो गया है


मुकामिर-खाना-ऐ-आफाक वो है

के जो आया है याँ कुछ खो गया है


सरहाने 'मीर' के आहिस्ता बोलो

अभी टुक रोते-रोते सो गया है