"रागभीनी तू सजनि निश्वास / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महादेवी वर्मा |संग्रह=सांध्यगीत / महादेवी वर्मा }} राग...) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=सांध्यगीत / महादेवी वर्मा | |संग्रह=सांध्यगीत / महादेवी वर्मा | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!<br> | रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!<br> | ||
लोचनों में क्या मदिर नव?<br> | लोचनों में क्या मदिर नव?<br> |
23:59, 2 अक्टूबर 2009 का अवतरण
रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!
लोचनों में क्या मदिर नव?
देख जिसकी नीड़ की सुधि फूट निकली बन मधुर रव!
झूलते चितवन गुलाबी-
में चले घर खग हठीले!
रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!
छोड़ किस पाताल का पुर?
राग से बेसुध, चपल सजीले नयन में भर,
रात नभ के फूल लाई,
आँसुओं से कर सजीले!
रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!
आज इन तन्द्रिल पलों में!
उलझती अलकें सुनहली असित निशि के कुन्तलों में!
सजनि नीलमरज भरे
रँग चूनरी के अरुण पीले!
रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!
रेख सी लघु तिमिर लहरी,
चरण छू तेरे हुई है सिन्धु सीमाहीन गहरी!
गीत तेरे पार जाते
बादलों की मृदु तरी ले!
रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!
कौन छायालोक की स्मृति,
कर रही रङ्गीन प्रिय के द्रुत पदों की अंक-संसृति,
सिहरती पलकें किये-
देती विहँसते अधर गीले!
रागभीनी तू सजनि निश्वास भी तेरे रँगीले!