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00:10, 3 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
यह सुख दुखमय राग
बजा जाते हो क्यों अलबेले?
चितवन से रेखा अंकित कर,
रागमयी स्मित से नव रँग भर,
अश्रुकणों से धोते हो क्यों
फिर वे चित्र रँगे, ले?
श्वासों से पलकें स्पन्दित जागृत कर,
पद-ध्वनि से बेसुध करते क्यों
यह जागृति के मेले?
रोमों में भर आकुल कम्पन,
मुस्कानों में दुख की सिहरन,
जीवन को चिर प्यास पिलाकर
क्यों तुम निष्ठुर खेले?
कण कण में रच अभिनव बन्धन,
क्षण क्षण को कर भ्रममय उलझन,
पथ में बिखरा शूल
बुला जाते हो दूर अकेले!