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"कोई पार नदी के गाता / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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इस देहाती गाने का स्वर,<br>
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सदा इसे मैं सुनता रहता, सदा इसे यह गाता जाता!<br>
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सदा इसे मैं सुनता रहता, सदा इसे यह गाता जाता!
 
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17:26, 3 अक्टूबर 2009 का अवतरण

कोई पार नदी के गाता!

भंग निशा की नीरवता कर,
इस देहाती गाने का स्वर,
ककडी के खेतों से उठकर, आता जमुना पर लहराता!
कोई पार नदी के गाता!

होंगे भाई-बंधु निकट ही,
कभी सोचते होंगे यह भी,
इस तट पर भी बैठा कोई, उसकी तानों से सुख पाता!
कोई पार नदी के गाता!

आज न जाने क्यों होता मन,
सुन कर यह एकाकी गायन,
सदा इसे मैं सुनता रहता, सदा इसे यह गाता जाता!
कोई पार नदी के गाता!