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"मुझसे चांद कहा करता है / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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+ | तारों का असमर्थ अश्रु भी नभ से नित्य बहा करता है। | ||
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01:07, 4 अक्टूबर 2009 का अवतरण
मुझ से चाँद कहा करता है--
चोट कडी है काल प्रबल की,
उसकी मुस्कानों से हल्की,
राजमहल कितने सपनों का पल में नित्य ढहा करता है|
मुझ से चाँद कहा करता है--
तू तो है लघु मानव केवल,
पृथ्वी-तल का वासी निर्बल,
तारों का असमर्थ अश्रु भी नभ से नित्य बहा करता है।
मुझ से चाँद कहा करता है--
तू अपने दुख में चिल्लाता,
आँखो देखी बात बताता,
तेरे दुख से कहीं कठिन दुख यह जग मौन सहा करता है।
मुझ से चाँद कहा करता है--