भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"स्वप्न था मेरा भयंकर / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
|||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन | |
+ | |संग्रह=निशा निमन्त्रण / हरिवंशराय बच्चन | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | स्वप्न था मेरा भयंकर! | ||
− | + | रात का-सा था अंधेरा, | |
+ | बादलों का था न डेरा, | ||
+ | किन्तु फिर भी चन्द्र-तारों से हुआ था हीन अम्बर! | ||
+ | स्वप्न था मेरा भयंकर! | ||
− | + | क्षीण सरिता बह रही थी, | |
− | + | कूल से यह कह रही थी- | |
− | + | शीघ्र ही मैं सूखने को, भेंट ले मुझको हृदय भर! | |
− | स्वप्न था मेरा भयंकर! | + | स्वप्न था मेरा भयंकर! |
− | + | धार से कुछ फासले पर | |
− | + | सिर कफ़न की ओढ चादर | |
− | + | एक मुर्दा गा रहा था बैठकर जलती चिता पर! | |
− | + | स्वप्न था मेरा भयंकर! | |
− | + | </poem> | |
− | धार से कुछ फासले पर | + | |
− | + | ||
− | एक मुर्दा गा रहा था बैठकर जलती चिता पर! | + | |
− | स्वप्न था मेरा भयंकर! < | + |
17:42, 4 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
स्वप्न था मेरा भयंकर!
रात का-सा था अंधेरा,
बादलों का था न डेरा,
किन्तु फिर भी चन्द्र-तारों से हुआ था हीन अम्बर!
स्वप्न था मेरा भयंकर!
क्षीण सरिता बह रही थी,
कूल से यह कह रही थी-
शीघ्र ही मैं सूखने को, भेंट ले मुझको हृदय भर!
स्वप्न था मेरा भयंकर!
धार से कुछ फासले पर
सिर कफ़न की ओढ चादर
एक मुर्दा गा रहा था बैठकर जलती चिता पर!
स्वप्न था मेरा भयंकर!