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"भले दिन आये तो आज़ार बन गया आराम / आरज़ू लखनवी" के अवतरणों में अंतर
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21:54, 5 अक्टूबर 2009 का अवतरण
भले दिन आये तो आज़ार बन गया आराम।
क़फ़स के तिनके भी काम आ गए नशेमन के॥
मिटा के फिर तो बनाने पर अब नहीं काबू।
वो सर झुकाए खड़े है, क़रीब मदफ़न के॥