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"गुलाबों की तरह दिल अपना शबनम में / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर

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ग़ज़ल के रेशमी धागों में यों मोती पिरोते हैं  
 
ग़ज़ल के रेशमी धागों में यों मोती पिरोते हैं  
  
पुराने मौसमों के नामे मानी मिटते जाते हैं  
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कहीं पानी कहीं शबनम कहीं आँसू भिगोते हैं  
 
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यही अंदाज़ है मेरा समन्दर फ़तह करने  का   
 
यही अंदाज़ है मेरा समन्दर फ़तह करने  का   
मेरी कागज़ की कश्ती में कई जुगनू भी होते हैं  
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सुना है 'बद्र' साहब महफ़िलों की जान होते थे   
 
सुना है 'बद्र' साहब महफ़िलों की जान होते थे   
 
बहुत दिन से वो पत्थर हैं, न हंसते हैं न रोते हैं  
 
बहुत दिन से वो पत्थर हैं, न हंसते हैं न रोते हैं  
 
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22:00, 9 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

गुलाबों की तरह दिल अपना शबनम में भिगोते हैं
मोहब्बत करने वाले ख़ूबसूरत लोग होते हैं

किसी ने जिस तरह अपने सितारों को सजाया है
ग़ज़ल के रेशमी धागों में यों मोती पिरोते हैं

पुराने मौसमों के नामे-नामी मिटते जाते हैं
कहीं पानी कहीं शबनम कहीं आँसू भिगोते हैं

यही अंदाज़ है मेरा समन्दर फ़तह करने का
मेरी कागज़ की कश्ती में कई जुगनू भी होते हैं

सुना है 'बद्र' साहब महफ़िलों की जान होते थे
बहुत दिन से वो पत्थर हैं, न हंसते हैं न रोते हैं