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"जिन्स-ए-गिराँ थी ख़ूबी-ए-क़िस्मत नहीं मिली / शाहिद माहुली" के अवतरणों में अंतर
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बिकने को हम भी आये थे क़ीमत नहीं मिली | बिकने को हम भी आये थे क़ीमत नहीं मिली | ||
− | हंगाम-ए-रोज़ | + | हंगाम-ए-रोज़-ओ- शब के मशा |
− | कुछ कारोबार-ए- | + | गिल थे और भी |
+ | कुछ कारोबार-ए-ज़ीस्त | ||
+ | से फ़ु | ||
+ | र्सत नहीं मिली | ||
कुछ दूर हम भी साथ चले थे कि यूँ हुआ | कुछ दूर हम भी साथ चले थे कि यूँ हुआ | ||
− | कुछ मसअलों पे उनसे | + | कुछ मसअलों पे उनसे तबी |
+ | यत नहीं मिली | ||
− | इक | + | इक आँ |
+ | च थी कि | ||
+ | जिससे सुलगता रहा वजूद | ||
शोला सा जाग उट्ठे वो शिद्दत नहीं मिली | शोला सा जाग उट्ठे वो शिद्दत नहीं मिली | ||
− | वो बेहिसी थी | + | वो बेहिसी थी ख़ु |
− | बरसे जो सुबह | + | श्क हुआ सब्ज़ा-ए-उम्मीद |
+ | बरसे जो सुबह-ओ- शाम वो चाहत नहीं मिली | ||
ख़्वाहिश थी जुस्तजू भी थी दीवानगी न थी | ख़्वाहिश थी जुस्तजू भी थी दीवानगी न थी | ||
− | + | सहरा-नवर्द बनके भी वहशत नहीं मिली | |
वह रोशनी थी साए भी तहलील हो गए | वह रोशनी थी साए भी तहलील हो गए | ||
आईनाघर में अपनी भी सूरत नहीं मिली | आईनाघर में अपनी भी सूरत नहीं मिली | ||
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08:05, 12 अक्टूबर 2009 का अवतरण
जिन्स-ए-गिराँ थी ख़ूबी-ए-क़िस्मत नहीं मिली
बिकने को हम भी आये थे क़ीमत नहीं मिली
हंगाम-ए-रोज़-ओ- शब के मशा
गिल थे और भी
कुछ कारोबार-ए-ज़ीस्त
से फ़ु
र्सत नहीं मिली
कुछ दूर हम भी साथ चले थे कि यूँ हुआ
कुछ मसअलों पे उनसे तबी
यत नहीं मिली
इक आँ
च थी कि
जिससे सुलगता रहा वजूद
शोला सा जाग उट्ठे वो शिद्दत नहीं मिली
वो बेहिसी थी ख़ु
श्क हुआ सब्ज़ा-ए-उम्मीद
बरसे जो सुबह-ओ- शाम वो चाहत नहीं मिली
ख़्वाहिश थी जुस्तजू भी थी दीवानगी न थी
सहरा-नवर्द बनके भी वहशत नहीं मिली
वह रोशनी थी साए भी तहलील हो गए
आईनाघर में अपनी भी सूरत नहीं मिली