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16:00, 12 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

लड़की काग़ज़ रख कर भूल जाती है
जैसे शाम दिन को भूल जाती है

उसके हाथों का काग़ज़ धूप का टुकड़ा है
लड़की धरती पर धूप का टुकड़ा भूल जाती है

मेरी दुनियावी समझाइशों पे हँस कर
लड़की अपना ग़म भूल जाती है

डाँटता हूँ कि सीख जाए दुनिया के फ़साने
लेकिन अपनी आँखों में रख कर सब भूल जाती है।