"महात्मा जी के प्रति / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर
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− | निर्वाणोन्मुख आदर्शों के अंतिम दीप शिखोदय! - | + | {{KKCatKavita}} |
− | जिनकी ज्योति छटा के क्षण से प्लावित आज दिगंचल, - | + | <poem> |
− | गत आदर्शों का अभिभव ही मानव आत्मा की जय | + | निर्वाणोन्मुख आदर्शों के अंतिम दीप शिखोदय! - |
− | अत: पराजय आज तुम्हारी जय से चिर लोकोज्वल! | + | जिनकी ज्योति छटा के क्षण से प्लावित आज दिगंचल, - |
− | मानव आत्मा के प्रतीक! आदर्शों से तुम ऊपर, | + | गत आदर्शों का अभिभव ही मानव आत्मा की जय |
− | निज उद्देश्यों से महान, निज यश से विद, चिरंतन; | + | अत: पराजय आज तुम्हारी जय से चिर लोकोज्वल! |
− | सिद्ध नहीं तुम लोक सिद्धि के साधक बने महत्तर, | + | मानव आत्मा के प्रतीक! आदर्शों से तुम ऊपर, |
− | विजित आज तुम नर वरेण्य, गण जन विजयी साधारण! | + | निज उद्देश्यों से महान, निज यश से विद, चिरंतन; |
− | युग युग की संस्कृतियों का चुन तुम्नए सार सनातन | + | सिद्ध नहीं तुम लोक सिद्धि के साधक बने महत्तर, |
− | नव संस्कृति का शिलान्यास करना चाहा भव शुभकर | + | विजित आज तुम नर वरेण्य, गण जन विजयी साधारण! |
− | साम्राज्यों ने ठुकरा दिया युगों का वैभव पाहन - | + | युग युग की संस्कृतियों का चुन तुम्नए सार सनातन |
− | पदाघात से मोह मुक हो गया आज जन अन्तर! | + | नव संस्कृति का शिलान्यास करना चाहा भव शुभकर |
− | दलित देश के दुर्दम नेता, हे ध्रुव, धीर धुरन्धर, | + | साम्राज्यों ने ठुकरा दिया युगों का वैभव पाहन - |
− | आत्मशक्ति से दिया जाति-शव को तुमने जीवन बल; | + | पदाघात से मोह मुक हो गया आज जन अन्तर! |
− | विश्व सभ्यता का होना था नखशिख नव रूपान्तर, | + | दलित देश के दुर्दम नेता, हे ध्रुव, धीर धुरन्धर, |
− | राम राज्य का स्वप्न तुम्हारा हुआ न यों ही निष्फल! | + | आत्मशक्ति से दिया जाति-शव को तुमने जीवन बल; |
− | विकसित व्यक्तिवाद के मूल्यों का विनाश था निश्चय, | + | विश्व सभ्यता का होना था नखशिख नव रूपान्तर, |
− | वृद्ध विश्व सामन्त काल का था केवल जड खंडहर! | + | राम राज्य का स्वप्न तुम्हारा हुआ न यों ही निष्फल! |
− | हे भारत के हृदय! तुम्हारे साथ आज नि:संशय | + | विकसित व्यक्तिवाद के मूल्यों का विनाश था निश्चय, |
− | चूर्ण हो गया विगत सांस्कृतिक हृदय जगत का जर्जर! | + | वृद्ध विश्व सामन्त काल का था केवल जड खंडहर! |
− | गत संस्कृतियों का आदर्शों का था नियत पराभाव, | + | हे भारत के हृदय! तुम्हारे साथ आज नि:संशय |
− | वर्ग व्यक्ति की आत्मा पर थे सौध धाम जिनके स्तिथ< | + | चूर्ण हो गया विगत सांस्कृतिक हृदय जगत का जर्जर! |
+ | गत संस्कृतियों का आदर्शों का था नियत पराभाव, | ||
+ | वर्ग व्यक्ति की आत्मा पर थे सौध धाम जिनके स्तिथ | ||
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12:13, 13 अक्टूबर 2009 का अवतरण
निर्वाणोन्मुख आदर्शों के अंतिम दीप शिखोदय! -
जिनकी ज्योति छटा के क्षण से प्लावित आज दिगंचल, -
गत आदर्शों का अभिभव ही मानव आत्मा की जय
अत: पराजय आज तुम्हारी जय से चिर लोकोज्वल!
मानव आत्मा के प्रतीक! आदर्शों से तुम ऊपर,
निज उद्देश्यों से महान, निज यश से विद, चिरंतन;
सिद्ध नहीं तुम लोक सिद्धि के साधक बने महत्तर,
विजित आज तुम नर वरेण्य, गण जन विजयी साधारण!
युग युग की संस्कृतियों का चुन तुम्नए सार सनातन
नव संस्कृति का शिलान्यास करना चाहा भव शुभकर
साम्राज्यों ने ठुकरा दिया युगों का वैभव पाहन -
पदाघात से मोह मुक हो गया आज जन अन्तर!
दलित देश के दुर्दम नेता, हे ध्रुव, धीर धुरन्धर,
आत्मशक्ति से दिया जाति-शव को तुमने जीवन बल;
विश्व सभ्यता का होना था नखशिख नव रूपान्तर,
राम राज्य का स्वप्न तुम्हारा हुआ न यों ही निष्फल!
विकसित व्यक्तिवाद के मूल्यों का विनाश था निश्चय,
वृद्ध विश्व सामन्त काल का था केवल जड खंडहर!
हे भारत के हृदय! तुम्हारे साथ आज नि:संशय
चूर्ण हो गया विगत सांस्कृतिक हृदय जगत का जर्जर!
गत संस्कृतियों का आदर्शों का था नियत पराभाव,
वर्ग व्यक्ति की आत्मा पर थे सौध धाम जिनके स्तिथ