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16:26, 14 अक्टूबर 2009 का अवतरण
सिंघवा चमार का बेटा - फकीरा,
एक-आध साल ही स्कूल जा पाया
कमाल का ढोलक बजाता।
सोलह-सत्रह के होने के साथ ही आने लगा था -
बुलावा दूर-दूर से।
लौटा करता कमाकर कई कई सौ ,
लेकिन न देता गरीब बाप को ,
खरीद लाता बाज़ार से
बिजली की तार और तरह-तरह के बल्ब .....
एक ही झोपडे में
बिजली के कई बल्ब लगाता,
और जल जाने पर ,
न जाने किस हसरत भरी निगाहों से
निहारता घंटो-घंटे ,
अपने घर की दमकती हुई रौशनी को।
गाँव में ही नहीं ,
पूरे इलाके में प्रसिद्ध था -
फकीरा के ढोलक और बिजली का मिथक
और प्रसिद्ध था -
उसका गाढा काला रंग
और लकदक सफ़ेद
बनियान और घुटने के ऊपर की धोती
अक्सर फटा हुआ , लेकिन साफ सफ़ेद।
गाँव में एक या दो बार होने वाले नाटकों में बसते थे उसके प्राण
कोई प्रलोभन ,
उस महीने नहीं भेज पाता था
बाहर उसे ।
तो भी , नाटक मण्डली से दूर
घर में बैठा ,
इतनी आकांक्षा कि कोई बुलाने आए -उसके घर।
कहता था हर बार ,
कि आने ही वाला था ।
यही है हमारा फकीरा ,
माँ - बाप उसके निकम्मेपण से
दुखी थे जरूर ,
फिर भी ,
फकीरा की मिथकीय प्रसिद्धि से
उतनी ही चमकती थी आँखे
उनकी भी
भले ही ,
घर की रोटी जुटाने में वह मदद नहीं करता था !