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"बाल बच्चेदार स्त्री ने गौर से देखा / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर

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16:27, 14 अक्टूबर 2009 का अवतरण

बाल बच्चेदार स्त्री ने गौर से देखा

अपने शरीर को ,

मचल गई - संभावनाएं अपार हैं आज भी !

बुदबुदाई अभिलाषा के साथ

लेकिन कर ही क्या सकती हूँ मैं !

हो गई निढाल

मुंद गई आँखें ,

लुक-छिप करने लगा वजूद

कौंधने लगी अपनी सुंदर देह-यष्टि

अपने सामने ही

क्या यह मेरा है !

पति और बच्चे .......?

रास्तों पर देखते हैं लोग मुझे

है संतोष लेकिन मौन

मेरा अपना है मेरा सुंदर शरीर

हो सकता है बूढा और बीमार

रस्ते पर देखेंगे लोग फिर

होगा असंतोष ,

शायद मौन तब भी !

दुविधा में है स्त्री-सुंदर

अपने शरीर की मिलकियत के मुद्दे पर .............?