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"बाल बच्चेदार स्त्री ने गौर से देखा / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर
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बाल बच्चेदार स्त्री ने गौर से देखा | बाल बच्चेदार स्त्री ने गौर से देखा | ||
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अपने शरीर को , | अपने शरीर को , | ||
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मचल गई - संभावनाएं अपार हैं आज भी ! | मचल गई - संभावनाएं अपार हैं आज भी ! | ||
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बुदबुदाई अभिलाषा के साथ | बुदबुदाई अभिलाषा के साथ | ||
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लेकिन कर ही क्या सकती हूँ मैं ! | लेकिन कर ही क्या सकती हूँ मैं ! | ||
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हो गई निढाल | हो गई निढाल | ||
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मुंद गई आँखें , | मुंद गई आँखें , | ||
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लुक-छिप करने लगा वजूद | लुक-छिप करने लगा वजूद | ||
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कौंधने लगी अपनी सुंदर देह-यष्टि | कौंधने लगी अपनी सुंदर देह-यष्टि | ||
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अपने सामने ही | अपने सामने ही | ||
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क्या यह मेरा है ! | क्या यह मेरा है ! | ||
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पति और बच्चे .......? | पति और बच्चे .......? | ||
रास्तों पर देखते हैं लोग मुझे | रास्तों पर देखते हैं लोग मुझे | ||
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है संतोष लेकिन मौन | है संतोष लेकिन मौन | ||
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मेरा अपना है मेरा सुंदर शरीर | मेरा अपना है मेरा सुंदर शरीर | ||
− | + | हो सकता है बूढ़ा और बीमार | |
− | हो सकता है | + | |
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रस्ते पर देखेंगे लोग फिर | रस्ते पर देखेंगे लोग फिर | ||
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होगा असंतोष , | होगा असंतोष , | ||
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शायद मौन तब भी ! | शायद मौन तब भी ! | ||
दुविधा में है स्त्री-सुंदर | दुविधा में है स्त्री-सुंदर | ||
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अपने शरीर की मिलकियत के मुद्दे पर .............? | अपने शरीर की मिलकियत के मुद्दे पर .............? | ||
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18:54, 14 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
बाल बच्चेदार स्त्री ने गौर से देखा
अपने शरीर को ,
मचल गई - संभावनाएं अपार हैं आज भी !
बुदबुदाई अभिलाषा के साथ
लेकिन कर ही क्या सकती हूँ मैं !
हो गई निढाल
मुंद गई आँखें ,
लुक-छिप करने लगा वजूद
कौंधने लगी अपनी सुंदर देह-यष्टि
अपने सामने ही
क्या यह मेरा है !
पति और बच्चे .......?
रास्तों पर देखते हैं लोग मुझे
है संतोष लेकिन मौन
मेरा अपना है मेरा सुंदर शरीर
हो सकता है बूढ़ा और बीमार
रस्ते पर देखेंगे लोग फिर
होगा असंतोष ,
शायद मौन तब भी !
दुविधा में है स्त्री-सुंदर
अपने शरीर की मिलकियत के मुद्दे पर .............?