"वीरों का कैसा हो वसंत / सुभद्राकुमारी चौहान" के अवतरणों में अंतर
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आ रही हिमालय से पुकार | आ रही हिमालय से पुकार | ||
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है उदधि गरजता बार बार | है उदधि गरजता बार बार | ||
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प्राची पश्चिम भू नभ अपार; | प्राची पश्चिम भू नभ अपार; | ||
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सब पूछ रहें हैं दिग-दिगन्त | सब पूछ रहें हैं दिग-दिगन्त | ||
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वीरों का हो कैसा वसन्त | वीरों का हो कैसा वसन्त | ||
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फूली सरसों ने दिया रंग | फूली सरसों ने दिया रंग | ||
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मधु लेकर आ पहुंचा अनंग | मधु लेकर आ पहुंचा अनंग | ||
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वधु वसुधा पुलकित अंग अंग; | वधु वसुधा पुलकित अंग अंग; | ||
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है वीर देश में किन्तु कंत | है वीर देश में किन्तु कंत | ||
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वीरों का हो कैसा वसन्त | वीरों का हो कैसा वसन्त | ||
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भर रही कोकिला इधर तान | भर रही कोकिला इधर तान | ||
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मारू बाजे पर उधर गान | मारू बाजे पर उधर गान | ||
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है रंग और रण का विधान; | है रंग और रण का विधान; | ||
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मिलने को आए आदि अंत | मिलने को आए आदि अंत | ||
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वीरों का हो कैसा वसन्त | वीरों का हो कैसा वसन्त | ||
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गलबाहें हों या कृपाण | गलबाहें हों या कृपाण | ||
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चलचितवन हो या धनुषबाण | चलचितवन हो या धनुषबाण | ||
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हो रसविलास या दलितत्राण; | हो रसविलास या दलितत्राण; | ||
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अब यही समस्या है दुरंत | अब यही समस्या है दुरंत | ||
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वीरों का हो कैसा वसन्त | वीरों का हो कैसा वसन्त | ||
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कह दे अतीत अब मौन त्याग | कह दे अतीत अब मौन त्याग | ||
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लंके तुझमें क्यों लगी आग | लंके तुझमें क्यों लगी आग | ||
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ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग जाग; | ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग जाग; | ||
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बतला अपने अनुभव अनंत | बतला अपने अनुभव अनंत | ||
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वीरों का हो कैसा वसन्त | वीरों का हो कैसा वसन्त | ||
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हल्दीघाटी के शिला खण्ड | हल्दीघाटी के शिला खण्ड | ||
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ऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचंड | ऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचंड | ||
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राणा ताना का कर घमंड; | राणा ताना का कर घमंड; | ||
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दो जगा आज स्मृतियां ज्वलंत | दो जगा आज स्मृतियां ज्वलंत | ||
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वीरों का हो कैसा वसन्त | वीरों का हो कैसा वसन्त | ||
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भूषण अथवा कवि चंद नहीं | भूषण अथवा कवि चंद नहीं | ||
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बिजली भर दे वह छन्द नहीं | बिजली भर दे वह छन्द नहीं | ||
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है कलम बंधी स्वच्छंद नहीं; | है कलम बंधी स्वच्छंद नहीं; | ||
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फिर हमें बताए कौन हन्त | फिर हमें बताए कौन हन्त | ||
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वीरों का हो कैसा वसन्त | वीरों का हो कैसा वसन्त | ||
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16:13, 18 अक्टूबर 2009 का अवतरण
आ रही हिमालय से पुकार
है उदधि गरजता बार बार
प्राची पश्चिम भू नभ अपार;
सब पूछ रहें हैं दिग-दिगन्त
वीरों का हो कैसा वसन्त
फूली सरसों ने दिया रंग
मधु लेकर आ पहुंचा अनंग
वधु वसुधा पुलकित अंग अंग;
है वीर देश में किन्तु कंत
वीरों का हो कैसा वसन्त
भर रही कोकिला इधर तान
मारू बाजे पर उधर गान
है रंग और रण का विधान;
मिलने को आए आदि अंत
वीरों का हो कैसा वसन्त
गलबाहें हों या कृपाण
चलचितवन हो या धनुषबाण
हो रसविलास या दलितत्राण;
अब यही समस्या है दुरंत
वीरों का हो कैसा वसन्त
कह दे अतीत अब मौन त्याग
लंके तुझमें क्यों लगी आग
ऐ कुरुक्षेत्र अब जाग जाग;
बतला अपने अनुभव अनंत
वीरों का हो कैसा वसन्त
हल्दीघाटी के शिला खण्ड
ऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचंड
राणा ताना का कर घमंड;
दो जगा आज स्मृतियां ज्वलंत
वीरों का हो कैसा वसन्त
भूषण अथवा कवि चंद नहीं
बिजली भर दे वह छन्द नहीं
है कलम बंधी स्वच्छंद नहीं;
फिर हमें बताए कौन हन्त
वीरों का हो कैसा वसन्त