भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तू देश के महके हुए आँचल में पली / जाँ निसार अख़्तर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर }} Category:रुबाई <poem> तू देश के महके ह…)
(कोई अंतर नहीं)

13:18, 19 अक्टूबर 2009 का अवतरण

तू देश के महके हुए आँचल में पली
हर सोच है ख़ुश्बुओं के साँचे में ढली

हाथों को जोड़ने का ये दिलकश अंदाज़
डाली पे कंवल के जिस तरह बंद कली