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"जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर

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जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे
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घड़ी दो घड़ी मुझको पलकों पे रख
हज़ारों तरफ़ से निशाने लगे<br><br>
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यहाँ आते-आते ज़माने लगे
  
हुई शाम यादों के इक गाँव में <br>
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कभी बस्तियाँ दिल की यूँ भी बसीं
परिंदे उदासी के आने लगे <br><br>
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घड़ी दो घड़ी मुझको पलकों पे रख <br>
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वहीं ज़र्द पत्तों का कालीन है
यहाँ आते आते ज़माने लगे <br><br>
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गुलों के जहाँ शामियाने लगे
  
कभी बस्तियाँ दिल की यूँ भी बसीं <br>
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पढाई-लिखाई का मौसम कहाँ
दुकानें खुलीं, कारख़ाने लगे <br><br>
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पढाई लिखाई का मौसम कहाँ <br>
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23:56, 21 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे
हज़ारों तरफ़ से निशाने लगे

हुई शाम यादों के इक गाँव में
परिंदे उदासी के आने लगे

घड़ी दो घड़ी मुझको पलकों पे रख
यहाँ आते-आते ज़माने लगे

कभी बस्तियाँ दिल की यूँ भी बसीं
दुकानें खुलीं, कारख़ाने लगे

वहीं ज़र्द पत्तों का कालीन है
गुलों के जहाँ शामियाने लगे

पढाई-लिखाई का मौसम कहाँ
किताबों में ख़त आने-जाने लगे