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"डस्ट-बिन / हरजेन्द्र चौधरी" के अवतरणों में अंतर

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फिर से होगी उल्टी
अभी कसर है
-ऐसा लगता है कभी-कभी
एक कविता लिखने के बाद

एक कविता और दूसरी कविता
लिखने के बीच
बड़ी उबकाऊ उपमाएँ
बड़े नीच बिम्ब
बड़े जुगुप्सक पद-अर्थ
पेट की मरोड़ या बलग़म के चक्रवात की तरह
उठते हैं
कहीं बहुत भीतर से

कविताओं का यह पुलिन्दा
सड़ांधता हुआ 'डस्ट-बिन' है
मेरा
और
मेरे युग का...


रचनाकाल : 1999, नई दिल्ली