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"वो ग़ज़ल वालों का असलूब समझते होंगे / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर

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23:44, 24 अक्टूबर 2009 का अवतरण

वो ग़ज़ल वालो का असलूब[1] समझते होंगे चाँद कहते है किसे खूब समझते होंगे

इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरी लोग तुझको मेरा महबूब समझते होंगे

मैं समझता था मुहब्बत की जुबान खुशबू है फूल से लोग उसे खूब समझते होंगे

देख कर फूल के औराक[2] पे शबनम कुछ लोग तेरा अश्कों भरा मकतूब[3] समझते होंगे

भूल कर अपना ज़माना यह ज़माने वाले आज के प्यार को मायूब[4] समझते होंगे

शब्दार्थ : १. शैली २. पन्ने ,पृष्ट ३. ख़त ४. बुरा ,ऐबदार