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"फैली बाँहें / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर

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|संग्रह=अकेले कंठ की पुकार / अजित कुमार
 
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फिर तुमने बाँहें फैला, आकाश तक
 
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उड़ जाने की अभिलाषा मन में भरी,
 
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फिर मैनें सोचा- शायद मैं पंख हूँ  
 
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जो आ जाता काम, न यदि तुम त्यागतीं।
 
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त्यागे जाने पर तो अब असहाय हूँ।
 
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काश । 'बाँह फैली' बन पातीं पंख ही :
 
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वे, जो मुझे बांधने में असमर्थ थीं ।
 
वे, जो मुझे बांधने में असमर्थ थीं ।
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19:42, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

फिर तुमने बाँहें फैला, आकाश तक
उड़ जाने की अभिलाषा मन में भरी,
फिर मैनें सोचा- शायद मैं पंख हूँ
जो आ जाता काम, न यदि तुम त्यागतीं।

त्यागे जाने पर तो अब असहाय हूँ।

काश । 'बाँह फैली' बन पातीं पंख ही :
वे, जो मुझे बांधने में असमर्थ थीं ।