"घूरती हुई आँखें / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर
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पीपल के तले और | पीपल के तले और | ||
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बेलों के झुर्मुट में | बेलों के झुर्मुट में | ||
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देती थी फेरी । | देती थी फेरी । | ||
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‘भूतों से क्या डरना । | ‘भूतों से क्या डरना । | ||
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आखिर तो हम सबको मरना है, | आखिर तो हम सबको मरना है, | ||
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और भला क्या करना । | और भला क्या करना । | ||
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हम जो कहलाते हैं भारत के पूत । | हम जो कहलाते हैं भारत के पूत । | ||
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-हम भी तो होयेंगे ऐसे ही भूत ।‘ | -हम भी तो होयेंगे ऐसे ही भूत ।‘ | ||
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इसी तरह सोच-सोच | इसी तरह सोच-सोच | ||
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हिम्मत बँधाई मैंने काँपते-से मन को । | हिम्मत बँधाई मैंने काँपते-से मन को । | ||
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और तभी कमरे के किसी एक कोने में | और तभी कमरे के किसी एक कोने में | ||
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दिखीं मुझे बेधती-सी चमकदार आँखें । | दिखीं मुझे बेधती-सी चमकदार आँखें । | ||
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काँपता-सा मन हुआ जैसे निस्पन्द । | काँपता-सा मन हुआ जैसे निस्पन्द । | ||
+ | डर के मारे मैंने आँखें कीं बद । | ||
− | + | बीत गये कई सल … | |
+ | लेकिन अब भि तो मेरा है वही हाल । | ||
+ | एक उसी घटना को पाता मक़िं नहीं भूल । | ||
+ | याद मुझे आती : | ||
+ | ज्यों आते थे याद वर्ड्सवर्थ को डैफ़ोडिल फूल । | ||
+ | दीखतीं अँधेरे में हैं मुझको अब भी | ||
+ | चमकीली, तेज़, बेधतीं, सम्मोहन करतीं- | ||
+ | बिल्ली की दो आँखें … | ||
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+ | अन्धकार पाप है । और | ||
+ | अज्ञान भी । | ||
+ | लेकिन जिसको बेधें बिल्ली की आँखें- | ||
+ | रहकर अँधेरे में भी, प्प्प क्या करेगा वह- | ||
+ | घूरती हुई आँखों की स्थिति का ज्ञानी । | ||
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20:44, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
रात थी अँधेरी और
भूतों की टोली
पीपल के तले और
बेलों के झुर्मुट में
देती थी फेरी ।
‘भूतों से क्या डरना ।
आखिर तो हम सबको मरना है,
और भला क्या करना ।
हम जो कहलाते हैं भारत के पूत ।
-हम भी तो होयेंगे ऐसे ही भूत ।‘
इसी तरह सोच-सोच
हिम्मत बँधाई मैंने काँपते-से मन को ।
और तभी कमरे के किसी एक कोने में
दिखीं मुझे बेधती-सी चमकदार आँखें ।
काँपता-सा मन हुआ जैसे निस्पन्द ।
डर के मारे मैंने आँखें कीं बद ।
बीत गये कई सल …
लेकिन अब भि तो मेरा है वही हाल ।
एक उसी घटना को पाता मक़िं नहीं भूल ।
याद मुझे आती :
ज्यों आते थे याद वर्ड्सवर्थ को डैफ़ोडिल फूल ।
दीखतीं अँधेरे में हैं मुझको अब भी
चमकीली, तेज़, बेधतीं, सम्मोहन करतीं-
बिल्ली की दो आँखें …
अन्धकार पाप है । और
अज्ञान भी ।
लेकिन जिसको बेधें बिल्ली की आँखें-
रहकर अँधेरे में भी, प्प्प क्या करेगा वह-
घूरती हुई आँखों की स्थिति का ज्ञानी ।