भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रात की बात / विश्वरंजन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वरंजन }} <poem> </poem>)
 
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
  
  
 
+
बहुत अंदर छुपा पड़ा हादसों का आंतक
 +
एक जादू-सा जग पड़ता है सहसा
 +
और रात की परछाईयों के साथ करता है नृत्य
 +
एक सूखी बच्ची फिर से रोती है
 +
एक नंगी और और सिकुड़ जाती है पुलिस के नीचे
 +
मंगरू का बूढ़ा बाप चीखता है और
 +
खाँसता है एक तपेदिक खाँसी
  
 
</poem>
 
</poem>

03:29, 3 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण




बहुत अंदर छुपा पड़ा हादसों का आंतक
एक जादू-सा जग पड़ता है सहसा
और रात की परछाईयों के साथ करता है नृत्य
एक सूखी बच्ची फिर से रोती है
एक नंगी और और सिकुड़ जाती है पुलिस के नीचे
मंगरू का बूढ़ा बाप चीखता है और
खाँसता है एक तपेदिक खाँसी