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"प्रस्थान से पहले / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

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कनबतियाँ, अस्पर्श चुम्बन, <br>
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अनकही आपस में जानी प्रतीक्षाएँ,
::सहसा खुल जाने वाले <br>
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खुली आँखों की वापियों में और गहरे
पिघली चिनगारी को ओट रखते द्वार-- <br>
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:सहसा खुल जाने वाले
खिलने-सिमटने की चढ़ती-उतरती लहरें, <br>
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पिघली चिनगारी को ओट रखते द्वार— 
कंपकंपियाँ, हल्के दुलार... <br>
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खिलने-सिमटने की चढ़ती-उतरती लहरें,
काल की गाँस कर देती है <br>
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कँपकपियाँ, हल्के दुलार...
अपने को अपना ही अजनबी-- <br>
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काल की गाँस कर देती है
हमेशा, हमेशा, हमेशा... <br>
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अपने को अपना ही अजनबी— 
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हमेशा, हमेशा, हमेशा...
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21:48, 3 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

हमेशा
प्रस्थान से पहले का
वह डरावना क्षण
जिस में सब कुछ थम जाता है
और रुकने में
रीता हो जाता है:
गाड़ियाँ, बातें, इशारे
आँखों की टकराहटें,
साँस:
समय की फाँस अटक जाती है
(जीवन की गले में)
हमेशा, हमेशा, हमेशा...।

और हमेशा विदाई के पहले का
वह और भी डरावना क्षण
जिस में सारे अपनापे
सुन्न हो जाते हैं
एक परायेपन की
चट्टान के नीचे:
प्यार की मींड़दार पुकारें
सम उक्तियों में गूंज जानेवाली
गुंथी उंगलियों, विषम, घनी साँसों की यादें,
कनखियाँ, सहलाहटें,
कनबतियाँ,
अस्पर्श चुम्बन,
अनकही आपस में जानी प्रतीक्षाएँ,
खुली आँखों की वापियों में और गहरे
सहसा खुल जाने वाले
पिघली चिनगारी को ओट रखते द्वार—
खिलने-सिमटने की चढ़ती-उतरती लहरें,
कँपकपियाँ, हल्के दुलार...
काल की गाँस कर देती है
अपने को अपना ही अजनबी—
हमेशा, हमेशा, हमेशा...