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"वह मज़दूर / अनिल पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर
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सह चुका जो हर सितम | सह चुका जो हर सितम | ||
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रक्त नलिकाएं भी | रक्त नलिकाएं भी | ||
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दौड़ लगा रही थी | दौड़ लगा रही थी | ||
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चुस्ती फुर्ती के साथ | चुस्ती फुर्ती के साथ | ||
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जो था समाज की राजनीति से | जो था समाज की राजनीति से | ||
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बहुत दूर | बहुत दूर | ||
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वह मज़दूर | वह मज़दूर | ||
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फावड़ा लिए अपने कंधों पर | फावड़ा लिए अपने कंधों पर | ||
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चला जा रहा था | चला जा रहा था | ||
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वह निश्चिंत हो बेपनाह | वह निश्चिंत हो बेपनाह | ||
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समाज-समुदाय की | समाज-समुदाय की | ||
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गन्दी कूटनीति से | गन्दी कूटनीति से | ||
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बहुत दूर | बहुत दूर | ||
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वह मज़दूर | वह मज़दूर | ||
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राजनीति-कूटनीति | राजनीति-कूटनीति | ||
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थी सीमित उसके लिए | थी सीमित उसके लिए | ||
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यहीं पर | यहीं पर | ||
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हो नसीब | हो नसीब | ||
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मात्र दो वक़्त की रोटी | मात्र दो वक़्त की रोटी | ||
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सुख-सुकून से | सुख-सुकून से | ||
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किसी तरह होती रहे | किसी तरह होती रहे | ||
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परिवार का गुज़र-बसर | परिवार का गुज़र-बसर | ||
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चलाता फावड़ा इसीलिए | चलाता फावड़ा इसीलिए | ||
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रात को दिन में बदल देते है | रात को दिन में बदल देते है | ||
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वे | वे | ||
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अपने लिए | अपने लिए | ||
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हो वास्तविकता के निकट | हो वास्तविकता के निकट | ||
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ख़्वाबों से बहुत दूर | ख़्वाबों से बहुत दूर | ||
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वह मज़दूर॥ | वह मज़दूर॥ | ||
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21:36, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
जिसमें उत्साह था अदम
सह चुका जो हर सितम
रक्त नलिकाएं भी
दौड़ लगा रही थी
चुस्ती फुर्ती के साथ
जो था समाज की राजनीति से
बहुत दूर
वह मज़दूर
फावड़ा लिए अपने कंधों पर
चला जा रहा था
वह निश्चिंत हो बेपनाह
समाज-समुदाय की
गन्दी कूटनीति से
बहुत दूर
वह मज़दूर
राजनीति-कूटनीति
थी सीमित उसके लिए
यहीं पर
हो नसीब
मात्र दो वक़्त की रोटी
सुख-सुकून से
किसी तरह होती रहे
परिवार का गुज़र-बसर
चलाता फावड़ा इसीलिए
रात को दिन में बदल देते है
वे
अपने लिए
हो वास्तविकता के निकट
ख़्वाबों से बहुत दूर
वह मज़दूर॥