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"प्रार्थना / अनीता वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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मुझे अच्छी लगती है पुरानी कलम
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{{KKGlobal}}
पुरानी कापी पर उल्टी तरफ़ से लिखना
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{{KKRachna
शायद मेरा दिमाग पुराना है या मैं हूं आदिम
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|रचनाकार=अनीता वर्मा
मैं खोजती हूं पुरानापन
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}}
तुरत आयी एक पुरानी हंसी मुझे हल्का कर देती है
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[[Category: कविता]]
मुझे अच्छे लगते हैं नए बने हुए पुराने संबंध
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<poem>
पुरानी हंसी और दुख और चप्पलों के फ़ीते
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भेद मैं तुम्हारे भीतर जाना चाहती हूँ
नयी परिभाषाओं की भीड़ में
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रहस्य घुंघराले केश हटा कर  
संभाले जाने चाहिए पुराने संबंध
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मैं तुम्हारा मुंह देखना चाहती हूँ
नदी और जंगल के
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ज्ञान मैं तुमसे दूर जाना चाहती हूँ
रेत और आकाश के
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निर्बोध निस्पंदता तक
प्यार और प्रकाश के।
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अनुभूति मुझे मुक्त करो
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आकर्षण मैं तुम्हारा विरोध करती हूँ
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जीवन मैं तुम्हारे भीतर से चलकर आती हूँ।
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</poem>

21:42, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

भेद मैं तुम्हारे भीतर जाना चाहती हूँ
रहस्य घुंघराले केश हटा कर
मैं तुम्हारा मुंह देखना चाहती हूँ
ज्ञान मैं तुमसे दूर जाना चाहती हूँ
निर्बोध निस्पंदता तक
अनुभूति मुझे मुक्त करो
आकर्षण मैं तुम्हारा विरोध करती हूँ
जीवन मैं तुम्हारे भीतर से चलकर आती हूँ।