भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|रचनाकार=अनूप सेठी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
घड़ी आज भी बजा रही है साढ़े चार
पसीने से चिपचिपाता
बुक्का फाड़कर रोने भर की जगह नहीं है बस।
</poem>