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"पूंजी / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

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न पहाड़ों के गीत थे मेरे पास
 
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न घाटियों दर्रों के
 
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न सागर नदियों के गीत थे
 
न सागर नदियों के गीत थे
 
 
न नाविक मछुआरों के,
 
न नाविक मछुआरों के,
 
 
मैं तो मैदानों खेतों का रहनवार
 
मैं तो मैदानों खेतों का रहनवार
 
 
थोड़े से बोल थे बग़ीचे बघारों के ।
 
थोड़े से बोल थे बग़ीचे बघारों के ।
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13:27, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

न पहाड़ों के गीत थे मेरे पास
न घाटियों दर्रों के
न सागर नदियों के गीत थे
न नाविक मछुआरों के,
मैं तो मैदानों खेतों का रहनवार
थोड़े से बोल थे बग़ीचे बघारों के ।