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"आये हम ग़ालिब-ओ-इक़बाल के नग़्मात के बाद(ग़ज़ल) / अली सरदार जाफ़री" के अवतरणों में अंतर
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|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री | |रचनाकार=अली सरदार जाफ़री | ||
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आये हम ग़ालिब-ओ-इक़बाल के नग़्मात के बाद | आये हम ग़ालिब-ओ-इक़बाल के नग़्मात के बाद | ||
− | + | मुसहफफ़े-इश्क़ो-जुनूँ हुस्न की आयात के बाद | |
ऐ वतन ख़ाके-वतन वो भी तुझे दे देंगे | ऐ वतन ख़ाके-वतन वो भी तुझे दे देंगे | ||
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नारे-नुम्रूद<ref>एक अत्याचारी बादशाह जिसने ख़ुदाई का दावा किया था</ref> यही और यही ग़ुलज़ारे-ख़लील | नारे-नुम्रूद<ref>एक अत्याचारी बादशाह जिसने ख़ुदाई का दावा किया था</ref> यही और यही ग़ुलज़ारे-ख़लील | ||
− | कोई आतिश नहीं | + | कोई आतिश नहीं आतिशक़दा-ए-ज़ात के बाद |
राम-ओ-गौतम की ज़मीं हुर्मते-इन्साँ की अमीं | राम-ओ-गौतम की ज़मीं हुर्मते-इन्साँ की अमीं |
10:11, 6 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
आये हम ग़ालिब-ओ-इक़बाल के नग़्मात के बाद
मुसहफफ़े-इश्क़ो-जुनूँ हुस्न की आयात के बाद
ऐ वतन ख़ाके-वतन वो भी तुझे दे देंगे
बच गया है जो लहू अब के फ़सादात के बाद
नारे-नुम्रूद<ref>एक अत्याचारी बादशाह जिसने ख़ुदाई का दावा किया था</ref> यही और यही ग़ुलज़ारे-ख़लील
कोई आतिश नहीं आतिशक़दा-ए-ज़ात के बाद
राम-ओ-गौतम की ज़मीं हुर्मते-इन्साँ की अमीं
बाँझ हो जाएगी क्या ख़ून की बरसात के बाद
हमको मालूम है वादों की हक़ीक़त क्या है
बारिशे-संगे-सितम, ज़ामे-मुदारात के बाद
तश्नगी है कि बुझाये नहीं बुझती ‘सरदार’
बढ़ गयी कौसरो-तस्नीम<ref>स्वर्ग की हौज़ और नहर</ref> की सौग़ात के बाद
शब्दार्थ
<references/>