भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आग को गुलज़ार करदे, बर्फ़ को दरिया करे / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बशीर बद्र |संग्रह=आस / बशीर बद्र }} {{KKCatGhazal}} <poem> आग को …)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:47, 7 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

आग को गुलज़ार करदे, बर्फ़ को दरिया करे
देखने वाला तेरी आवाज़ को देखा करे

उसकी रहमत ने मिरे बच्चे के माथे पर लिखा
इस परिन्दे के परों पर आस्माँ सज़दा करे

एक मुट्ठी ख़ाक थे हम, एक मुट्ठी ख़ाक हैं
उसकी मर्ज़ी है हमें सहरा करे, दरिया करे

दिन का शहज़ादा मिरा मेहमान है, बेशक रहे
रात का भूला मुसाफ़िर भी यहाँ ठहरा करे

आज पाकिस्तान की इक शाम याद आई बहुत
क्या ज़ुरूरी है कि बेटी बाप से परदा करे

(अक्टूबर, १९९८)