भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जब तेरा हुक्म मिला / अहमद नदीम क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
}} | }} | ||
[[Category:ग़ज़ल]] | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
+ | <poem> | ||
+ | जब तेरा हुक्म मिला, तर्क मुहब्बत कर दी, | ||
+ | दिल मगर उस पे वो धडका, कि क़यामत कर दी| | ||
− | + | तुझसे किस तरह मैं इज़हार-ए-तमन्ना करता, | |
− | + | लफ़्ज़ सूझा तो मआनी ने बग़ावत कर दी| | |
− | + | मैं तो समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले, | |
− | + | तूने जाकर तो जुदाई मेरी कि़स्मत कर दी| | |
− | + | मुझको दुश्मन के वादों पे भी प्यार आता है, | |
− | + | तेरी उल्फ़त ने मुहब्बत मेरी आदत कर दी| | |
− | + | पूछ बैठा हूँ, मैं तुझसे तेरे कूचे का पता, | |
− | + | तेरी हालत ने कैसी तेरी सूरत कर दी| | |
− | + | </poem> | |
− | पूछ बैठा हूँ, मैं तुझसे तेरे कूचे का पता, | + | |
− | तेरी हालत ने कैसी तेरी सूरत कर दी|< | + |
19:35, 8 नवम्बर 2009 का अवतरण
जब तेरा हुक्म मिला, तर्क मुहब्बत कर दी,
दिल मगर उस पे वो धडका, कि क़यामत कर दी|
तुझसे किस तरह मैं इज़हार-ए-तमन्ना करता,
लफ़्ज़ सूझा तो मआनी ने बग़ावत कर दी|
मैं तो समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले,
तूने जाकर तो जुदाई मेरी कि़स्मत कर दी|
मुझको दुश्मन के वादों पे भी प्यार आता है,
तेरी उल्फ़त ने मुहब्बत मेरी आदत कर दी|
पूछ बैठा हूँ, मैं तुझसे तेरे कूचे का पता,
तेरी हालत ने कैसी तेरी सूरत कर दी|