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"जब तेरा हुक्म मिला / अहमद नदीम क़ासमी" के अवतरणों में अंतर

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तुझसे किस तरह मैं इज़हार-ए-तमन्ना करता,
दिल मगर उस पे वो धडका, कि क़यामत कर दी|<br><br>
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तूने जाकर तो जुदाई मेरी कि़स्मत कर दी|<br><br>
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पूछ बैठा हूँ, मैं तुझसे तेरे कूचे का पता,
तेरी उल्फ़त ने मुहब्बत मेरी आदत कर दी|<br><br>
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तेरी हालत ने कैसी तेरी सूरत कर दी|
 
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पूछ बैठा हूँ, मैं तुझसे तेरे कूचे का पता,<br>
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तेरी हालत ने कैसी तेरी सूरत कर दी|<br><br>
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19:35, 8 नवम्बर 2009 का अवतरण

जब तेरा हुक्म मिला, तर्क मुहब्बत कर दी,
दिल मगर उस पे वो धडका, कि क़यामत कर दी|

तुझसे किस तरह मैं इज़हार-ए-तमन्ना करता,
लफ़्ज़ सूझा तो मआनी ने बग़ावत कर दी|

मैं तो समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले,
तूने जाकर तो जुदाई मेरी कि़स्मत कर दी|

मुझको दुश्मन के वादों पे भी प्यार आता है,
तेरी उल्फ़त ने मुहब्बत मेरी आदत कर दी|

पूछ बैठा हूँ, मैं तुझसे तेरे कूचे का पता,
तेरी हालत ने कैसी तेरी सूरत कर दी|