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"मुझे कल मेरा एक साथी मिला / अहमद नदीम क़ासमी" के अवतरणों में अंतर

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जिस ने ये राज़ खोला<BR>
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ग़र्ज कुछ तो तहज़ीब सीखो"<BR><BR>
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19:39, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

मुझे कल मेरा एक साथी मिला
जिस ने ये राज़ खोला
कि "अब जज्बा-ओ-शौक़ की वहशतों के ज़माने गए"

फिर वो आहिस्ता-आहिस्ता चारों तरफ़ देखता
मुझ से कहने लगा

"अब बिसात-ए-मुहब्बत लपेटो
जहां से भी मिल जाएं दौलत - समटो
ग़र्ज कुछ तो तहज़ीब सीखो"