भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रेत से बुत न बना / अहमद नदीम क़ासमी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
}}
 
}}
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
+
<poem>
रेत से बुत न बना मेरे अच्छे फ़नकार<BR>
+
रेत से बुत न बना मेरे अच्छे फ़नकार
एक लम्हे को ठहर मैं तुझे पत्थर ला दूँ<BR>
+
एक लम्हे को ठहर मैं तुझे पत्थर ला दूँ
मैं तेरे सामने अम्बार लगा दूँ लेकिन<BR>
+
मैं तेरे सामने अम्बार लगा दूँ लेकिन
कौन से रंग का पत्थर तेरे काम आएगा<BR>
+
कौन से रंग का पत्थर तेरे काम आएगा
सुर्ख़ पत्थर जिसे दिल कहती है बेदिल दुनिया<BR>
+
सुर्ख़ पत्थर जिसे दिल कहती है बेदिल दुनिया
या वो पत्थराई हुई आँख का नीला पत्थर<BR>
+
या वो पत्थराई हुई आँख का नीला पत्थर
जिस में सदियों के तहय्युर के पड़े हों डोरे<BR>
+
जिस में सदियों के तहय्युर के पड़े हों डोरे
क्या तुझे रूह के पत्थर की जरूरत होगी<BR>
+
क्या तुझे रूह के पत्थर की जरूरत होगी
जिस पे हक़ बात भी पत्थर की तरह गिरती है<BR>
+
जिस पे हक़ बात भी पत्थर की तरह गिरती है
इक वो पत्थर है जिसे कहते हैं तहज़ीब-ए-सफ़ेद<BR>
+
इक वो पत्थर है जिसे कहते हैं तहज़ीब-ए-सफ़ेद
उस के मर-मर में सियाह ख़ून झलक जाता है<BR>
+
उस के मर-मर में सियाह ख़ून झलक जाता है
इक इन्साफ़ का पत्थर भी होता है मगर<BR>
+
इक इन्साफ़ का पत्थर भी होता है मगर
हाथ में तेशा-ए-ज़र हो, तो वो हाथ आता है<BR>
+
हाथ में तेशा-ए-ज़र हो, तो वो हाथ आता है
जितने मयार हैं इस दौर के सब पत्थर हैं<BR>
+
जितने मयार हैं इस दौर के सब पत्थर हैं
शेर भी रक्स भी तस्वीर-ओ-गिना भी पत्थर<BR>
+
शेर भी रक्स भी तस्वीर-ओ-गिना भी पत्थर
मेरे इलहाम तेरा ज़हन-ए-रसा भी पत्थर<BR>
+
मेरे इलहाम तेरा ज़हन-ए-रसा भी पत्थर
इस ज़माने में हर फ़न का निशां पत्थर है<BR>
+
इस ज़माने में हर फ़न का निशां पत्थर है
हाथ पत्थर हैं तेरे मेरी ज़ुबां पत्थर है<BR>
+
हाथ पत्थर हैं तेरे मेरी ज़ुबां पत्थर है
रेत से बुत न बना ऐ मेरे अच्छे फ़नकार<BR>
+
रेत से बुत न बना ऐ मेरे अच्छे फ़नकार
 +
</poem>

19:40, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

रेत से बुत न बना मेरे अच्छे फ़नकार
एक लम्हे को ठहर मैं तुझे पत्थर ला दूँ
मैं तेरे सामने अम्बार लगा दूँ लेकिन
कौन से रंग का पत्थर तेरे काम आएगा
सुर्ख़ पत्थर जिसे दिल कहती है बेदिल दुनिया
या वो पत्थराई हुई आँख का नीला पत्थर
जिस में सदियों के तहय्युर के पड़े हों डोरे
क्या तुझे रूह के पत्थर की जरूरत होगी
जिस पे हक़ बात भी पत्थर की तरह गिरती है
इक वो पत्थर है जिसे कहते हैं तहज़ीब-ए-सफ़ेद
उस के मर-मर में सियाह ख़ून झलक जाता है
इक इन्साफ़ का पत्थर भी होता है मगर
हाथ में तेशा-ए-ज़र हो, तो वो हाथ आता है
जितने मयार हैं इस दौर के सब पत्थर हैं
शेर भी रक्स भी तस्वीर-ओ-गिना भी पत्थर
मेरे इलहाम तेरा ज़हन-ए-रसा भी पत्थर
इस ज़माने में हर फ़न का निशां पत्थर है
हाथ पत्थर हैं तेरे मेरी ज़ुबां पत्थर है
रेत से बुत न बना ऐ मेरे अच्छे फ़नकार