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"वो कोई और न था / अहमद नदीम क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
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− | + | कली कली में ख़िज़ां के चिराग़ जलते थे| | |
− | + | तमाम उम्र वफ़ा के गुनाहगार रहे, | |
− | + | ये और बात कि हम आदमी तो अच्छे थे| | |
− | + | शब-ए-ख़ामोश को तन्हाई ने ज़बाँ दे दी, | |
− | + | पहाड़ गूँजते थे दश्त सन-सनाते थे| | |
− | + | वो एक बार मरे जिनको था हयात से प्यार, | |
− | + | जो जि़न्दगी से गुरेज़ाँ थे रोज़ मरते थे| | |
− | + | नए ख़याल अब आते है ढल के ज़ेहन में, | |
− | + | हमारे दिल में कभी खेत लह-लहाते थे| | |
− | + | ये इरतीक़ा का चलन है कि हर ज़माने में, | |
− | + | पुराने लोग नए आदमी से डरते थे| | |
− | + | 'नदीम' जो भी मुलाक़ात थी अधूरी थी, | |
− | + | कि एक चेहरे के पीछे हज़ार चेहरे थे | | |
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19:42, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
वो कोई और न था चंद ख़ुश्क पत्ते थे,
शजर से टूट के जो फ़स्ल-ए-गुल पे रोए थे|
अभी अभी तुम्हें सोचा तो कुछ न याद आया,
अभी अभी तो हम एक दूसरे से बिछड़े थे|
तुम्हारे बाद चमन पर जब इक नज़र डाली,
कली कली में ख़िज़ां के चिराग़ जलते थे|
तमाम उम्र वफ़ा के गुनाहगार रहे,
ये और बात कि हम आदमी तो अच्छे थे|
शब-ए-ख़ामोश को तन्हाई ने ज़बाँ दे दी,
पहाड़ गूँजते थे दश्त सन-सनाते थे|
वो एक बार मरे जिनको था हयात से प्यार,
जो जि़न्दगी से गुरेज़ाँ थे रोज़ मरते थे|
नए ख़याल अब आते है ढल के ज़ेहन में,
हमारे दिल में कभी खेत लह-लहाते थे|
ये इरतीक़ा का चलन है कि हर ज़माने में,
पुराने लोग नए आदमी से डरते थे|
'नदीम' जो भी मुलाक़ात थी अधूरी थी,
कि एक चेहरे के पीछे हज़ार चेहरे थे |